कोरोना मरीज़ों की मदद करने की कोशिश कर रहे भारतीय समूहों के पास मदद की मांग लगातार पहुंच रही है. हालांकि सरकार ने चिकित्सा सामग्री की आपूर्ति बढ़ाने की कोशिश की है लेकिन इसका वितरण अभी भी ठीक से नहीं हो पा रहा है.
सरकारी तंत्र ने अक्सर ऐसी विफलताओं की आलोचना पर खीझ प्रकट की है और किसी भी सलाह को ठुकरा दिया है.
भारत के महाधिवक्ता तुषार मेहता ने दिल्ली में ऑक्सीजन की कमी दूर करने से संबंधित एक सुनवाई के दौरान अदालत में कहा, “आइये हम कोशिश करें और बच्चों की तरह रोना छोड़ें.” स्वास्थ्य मंत्री ने पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को उनके सुझावों पर झिड़कते हुए विपक्षी कांग्रेस पार्टी पर कोरोना के बारे में “झूठ फैलाने” का आरोप लगाया. आपूर्ति से जुड़ी कमियों से इंकार करते हुए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने स्वास्थ्यकर्मियों सहित किसी भी शिकायतकर्ता के ख़िलाफ़ भारत के कठोर राष्ट्रीय सुरक्षा क़ानून के तहत कार्रवाई कर उनकी संपत्ति ज़ब्त करने की धमकी दी. भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने विदेशी दूतावासों को आपातकालीन आपूर्ति पहुंचाकर मदद करने के लिए विपक्ष के नेताओं के साथ नाहक तकरार की.
देश में जब रोज़ाना चार लाख से अधिक लोग संक्रमित हो रहे हैं और तीन हज़ार से ज़्यादा लोगों की मौतें हो रही हैं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली सरकार अपनी ही रिवायत में मगन है.
अनेक लोगों ने प्राथमिकताओं के गलत निर्धारण समेत कोरोना महामारी से निपटने में प्रशासनिक विफलता की आलोचना की है. भले ही इसने पूरी दुनिया को कोरोना वैक्सीन देने का वादा किया हो, फ़िलहाल भारत का प्रमुख वैक्सीन निर्माता यह अनुबंध पूरा नहीं कर पा रहा है. इस बीच निर्माता कंपनी के मालिक ने कहा है कि उन्हें धमकी के कारण भारत छोड़ना पड़ा है. उन्होंने यह भी कहा कि अगर वह चुनावों के दौरान बड़ी-बड़ी रैलियों और एक हिंदू धार्मिक आयोजन सहित इस संकट के तेजी से फैलने की वजहों के बारे में मुंह खोलें तो उनका “सिर क़लम कर दिया जाएगा.”
हालांकि उनकी चिंताएं अतिरंजित हो सकती हैं और उन्होंने ऐसा कहने के बाद वापस लौटने की बात कही है, लेकिन यह टिप्पणी दर्शाती है कि सरकार अपनी कमियां स्वीकार करने में अक्षम है और लोगों को चुप रहने के लिए मजबूर किया जा रहा है. ग्रामीण इलाकों में वायरस के प्रसार के साथ इस तरह का रवैया अंत्यंत जरूरतमंद लोगों को नुकसान ही पहुंचाएगा, खासकर अगर चिकित्सा विशेषज्ञ और स्वास्थ्य कर्मी बदले की कार्रवाई के डर से अपने मुंह नहीं खोलें.
अंतरराष्ट्रीय बिरादरी को सामानों की किल्लत दूर करने और वैक्सीन सुनिश्चित करने में मदद करनी चाहिए. इसे पूरे भारत में समय पर और समान वितरण सुनिश्चित करने के लिए पारदर्शिता और जवाबदेही पर जोर देना चाहिए और सरकार पर दबाव डालना चाहिए शांतिप्रिय कार्यकर्ताओं और आलोचकों को जेल में डालने की कार्रवाई समेत अपनी तमाम उत्पीड़नकारी नीतियां वापस ले.
सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही चेतावनी दी है कि वह “सोशल मीडिया और इंटरनेट पर अपनी शिकायत दर्ज करने वाले” नागरिकों के खिलाफ किसी भी पुलिस कार्रवाई को अदालत की अवमानना मानेगा. भारत के विनाशकारी कोविड-19 संकट से निपटने में अधिकारों का सम्मान करने वाली ऐसी ही कार्रवाई की जरुरत है.