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महामारी का शिक्षा पर गंभीर वैश्विक प्रभाव

पढ़ाई में नुकसान की भरपाई करें; स्कूली शिक्षा मुफ्त में मुहैया करें; इंटरनेट तक पहुंच का विस्तार करें

कोविड-19 महामारी के कारण स्कूल बंद होने से इक्वाडोर के ला जोसेफिना में सितंबर 2020 में अपने घर में इंटरनेट पर कक्षा के दौरान सेल फोन पर आखें टिकाये एलिसन क्विनोटोआ. © 2020 AP Photo / Dolores Ochoa

• कोविड के कारण स्कूलों के बंद होने से बच्चे असमान रूप से प्रभावित हुए क्योंकि महामारी के दौरान सभी बच्चों के पास सीखने के लिए जरूरी अवसर, साधन या पहुंच नहीं थी.

• लाखों छात्रों के लिए स्कूलों का बंद होना उनकी शिक्षा में अस्थायी तौर पर व्यवधान भर नहीं, बल्कि अचानक से इसका अंत होगा.

• शिक्षा को तमाम सरकारों की पुनर्निर्माण योजनाओं का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा होना चाहिए ताकि दुनिया भर में हर बच्चे को निःशुल्क शिक्षा सुलभ की सके.

(लंदन, 17 मई, 2021) - ह्यूमन राइट्स वॉच ने आज जारी एक रिपोर्ट में कहा कि सरकारों को कोविड-19 महामारी से हुए अभूतपूर्व व्यवधान के कारण बच्चों की शिक्षा के नुकसान की भरपाई के लिए तुरंत कदम उठाने चाहिए. ह्यूमन राइट्स वॉच की इस रिपोर्ट के साथ एक इंटरैक्टिव फीचर है जिसमें महामारी के दौरान शिक्षा से जुड़ी आम बाधाओं के गहराने की पड़ताल की गई है.

125 पृष्ठ की रिपोर्ट, "'वक़्त सालों तक उनका इंतजार नहीं करता : कोविड-19 महामारी के कारण बच्चों के शिक्षा के अधिकार में असमानता में वृद्धि," ("'इयर्स डोंट वेट फॉर देम': इंक्रीज्ड इनक्वालिटीज़ इन चिल्ड्रेन्स राइट टू एजुकेशन ड्यू टू द कोविड-19 पैन्डेमिक") में यह साक्ष्य प्रस्तुत किया गया है कि कोविड के कारण स्कूलों के बंद होने से कैसे बच्चे असमान रूप से प्रभावित हुए क्योंकि महामारी के दौरान तमाम बच्चों के पास सीखने के लिए जरूरी अवसर, साधन या पहुंच नहीं थी. ह्यूमन राइट्स वॉच ने पाया कि महामारी के दौरान ऑनलाइन शिक्षा पर अत्यधिक निर्भरता ने शिक्षा संबंधी सहायता के मौजूदा असमान वितरण को बढ़ावा दिया है. अनेक सरकारों के पास ऑनलाइन शिक्षा शुरू करने के लिए ऐसी नीतियां, संसाधन या बुनियादी ढांचा नहीं थे जिससे कि सभी बच्चे समान रूप से शिक्षा हासिल कर सके.

ह्यूमन राइट्स वॉच की सीनियर एजुकेशन रिसर्चर एलिन मार्टिनेज ने कहा, "महामारी के दौरान लाखों बच्चों के शिक्षा से वंचित होने के कारण, अब समय आ गया है कि बेहतर और अधिक न्यायपूर्ण एवं मजबूत शिक्षा प्रणाली का पुनर्निर्माण कर शिक्षा के अधिकार को सुदृढ़ किया जाए. इसका उद्देश्य सिर्फ महामारी से पहले की स्थिति बहाल करना नहीं, बल्कि व्यवस्था की उन खामियों को दूर करना होना चाहिए जिनके कारण लंबे समय से स्कूल के दरवाजे सभी बच्चों के लिए खुले नहीं हैं.”

ह्यूमन राइट्स वॉच ने अप्रैल 2020 से अप्रैल 2021 के बीच 60 देशों में 470 से अधिक छात्रों, अभिभावकों और शिक्षकों का साक्षात्कार किया.

नाइजीरिया के लागोस में सात बच्चों की एक मां, जिनकी आमदनी का स्रोत सूख हो गया  क्योंकि जिस विश्वविद्यालय में वह सफाईकर्मी थीं, महामारी में बंद हो गया, ने ह्यूमन राइट्स वॉच को बताया, "उनके शिक्षक ने मुझे ऑनलाइन पढ़ाई के लिए एक बड़ा फोन [स्मार्टफोन] खरीदने के लिए कहा. मेरे पास अपने परिवार का पेट भरने के लिए पैसे नहीं हैं और मैं रोजमर्रे के खर्चे के लिए संघर्ष कर रही हूं. मैं फोन और इंटरनेट का खर्च कैसे उठा सकती हूं?”

मई 2021 तक, 26 देशों में स्कूल पूरी तरह से बंद थे और 55 देशों में स्कूल केवल आंशिक रूप से - या तो कुछ स्थानों में या केवल कुछ कक्षाओं के लिए - खुले थे. यूनेस्को के अनुसार, दुनिया भर में स्कूल जाने वाले करीब 90 फीसदी बच्चों की शिक्षा महामारी में बाधित हुई है.

ह्यूमन राइट्स वॉच ने कहा कि लाखों छात्रों के लिए स्कूलों का बंद होना उनकी शिक्षा में अस्थायी व्यवधान भर नहीं, बल्कि अचानक से इसका अंत होगा. बच्चों ने काम करना शुरू कर दिया है, शादी कर ली है, माता-पिता बन गए हैं, शिक्षा से उनका मोहभंग हो गया है, यह मान लिया है वे फिर से पढ़ाई शुरू नहीं कर पाएंगे या उम्र अधिक हो जाने के कारण अपने देश के कानूनों के तहत सुनिश्चित मुफ्त या अनिवार्य शिक्षा से बंचित हो जाएंगे.

यहां तक कि जो छात्र अपनी कक्षाओं में लौट आए हैं या लौट आएंगे, साक्ष्य बताते हैं कि आने वाले कई वर्षों तक वे महामारी के दौरान पढ़ाई में हुए नुकसान के प्रभावों को महसूस करते रहेंगे.

बहुत से बच्चों की पढ़ाई में क्षति पहले से मौजूद समस्याओं के कारण हुई है: संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के मुताबिक, कोविड-19 के प्रसार से पहले ही पांच में से एक बच्चा स्कूल से बाहर था. कोविड के कारण स्कूलों के बंद होने से खास तौर पर महामारी के पूर्व शिक्षा में भेदभाव और बहिष्करण का सामना करने वाले समूहों के छात्रों को नुकसान पहुंचा है.

इन छात्रों में शामिल हैं: गरीबी में रहने वाले या उसकी दहलीज़ पर खड़े बच्चे; विकलांग बच्चे; किसी देश के नृजातीय और नस्लीय अल्पसंख्यक समूहों के बच्चे; लैंगिक असमानता वाले देशों की लड़कियां; लेस्बियन, गे, बायसेक्सुअल और ट्रांसजेंडर (एलजीबीटी) बच्चे; ग्रामीण क्षेत्रों या सशस्त्र संघर्ष से प्रभावित क्षेत्रों के बच्चे; और विस्थापित, शरणार्थी, प्रवासी तथा शरण मांगने बच्चे.

मार्टिनेज ने कहा, "सरकारों के पास वर्षों से ऐसे ठोस साक्ष्य थे जो उन्हें दिखा रहे थे कि स्कूल बंद होने के दौरान बच्चों के किन समूहों के शैक्षिक रूप से प्रभावित होने की सबसे अधिक आशंका है, फिर भी इन बच्चों ने अपनी पढ़ाई जारी रखने में कुछ सबसे बड़ी बाधाओं का सामना किया. महज स्कूलों को दुबारा खोलने से नुकसान की भरपाई नहीं होगी, और न ही यह सुनिश्चित होगा कि सभी बच्चे स्कूल लौट आएंगे."

ह्यूमन राइट्स वॉच ने पाया कि महामारी के दौर में स्कूल सभी छात्रों को समान रूप से दूरस्थ शिक्षा देने के लिए पूरी तरह तैयार नहीं थे. इसका कारण सरकारों की अपनी शिक्षा प्रणाली में भेदभाव और असमानताओं को दूर करने, या घरों में सस्ती, सुचारू बिजली जैसी बुनियादी सरकारी सेवाएं सुनिश्चित करने या सस्ती इंटरनेट सुविधा उपलब्ध कराने में उनकी नाकामयाबी  है.

कम आय वाले परिवारों के बच्चों के ऑनलाइन पढ़ाई से बंचित होने के अधिक आसार थे  क्योंकि वे पर्याप्त डिवाइस या इंटरनेट नहीं खरीद सकते थे. ऐतिहासिक रूप से कम संसाधनों वाले स्कूलों ने, जिनके छात्र पहले से ही शिक्षा संबंधी बड़ी बाधाओं का सामना कर रहे थे, ने डिजिटल सीमाबद्धताओं के समक्ष अपने छात्रों को पढ़ाने में विशेष कठिनाइयों का सामना किया. शिक्षा प्रणाली अक्सर छात्रों और शिक्षकों के लिए डिजिटल साक्षरता प्रशिक्षण प्रदान करने में विफल रही है जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि छात्र और शिक्षक इन तकनीकों का सुरक्षित और आत्मविश्वास के साथ उपयोग कर सकें.

ह्यूमन राइट्स वॉच ने कहा कि शिक्षा को तमाम सरकारों की पुनर्निर्माण योजनाओं का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा होना चाहिए. सरकार को बच्चों की शिक्षा पर महामारी के प्रभाव और पहले से मौजूद समस्याओं, दोनों को संबोधित करना चाहिए. राष्ट्रीय अर्थव्यवस्थाओं पर महामारी के कारण पड़े भारी वित्तीय दबाव के आलोक में, सरकारों को चाहिए कि सार्वजनिक शिक्षा के वित्त पोषण की हिफाज़त करें और इसे प्राथमिकता दें.

ह्यूमन राइट्स वॉच ने कहा कि सरकारों को चाहिए कि 2030 तक सभी बच्चों के लिए समावेशी गुणवत्तापूर्ण प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा प्राप्ति की गारंटी करने वाले संयुक्त राष्ट्र सतत विकास लक्ष्यों के तहत 2015 में की गई अपनी प्रतिबद्धताओं पर तुरंत अमल करें. उन्हें पढ़ाई छूटने के खतरे या बाधाओं का सबसे ज्यादा सामना कर रहे बच्चों की स्कूल वापसी पर पूरा जोर लगाना चाहिए.

सरकारों और स्कूलों को इसका विश्लेषण करना चाहिए कि किसने स्कूल छोड़ा और कौन वापस आया और सुनिश्चित करना चाहिए कि स्कूल वापसी कार्यक्रम पढ़ाई छोड़ने वाले सभी बच्चों की खोजबीन करे, साथ ही इसके लिए उन्हें वित्तीय और सामाजिक सुविधाएं प्रदान करनी चाहिए. स्कूल वापसी कार्यक्रम अभियानों की पहुंच व्यापक होनी चाहिए और इसे उन तमाम बच्चों और युवाओं का स्वागत करना चाहिए जो स्कूलों के बंद होने के पहले से ही शिक्षा प्रणाली से बाहर थे.

सभी सरकारों और उनकी मदद कर रहे दाताओं और अंतर्राष्ट्रीय पक्षों को समावेशी सार्वजनिक शिक्षा प्रणाली को मजबूत करने के लिए दृढ़प्रतिज्ञ होना चाहिए. मजबूत प्रणाली के निर्माण के लिए जरूरी है कि पर्याप्त निवेश और संसाधनों का समान वितरण किया जाए, साथ ही   भेदभावपूर्ण नीतियों और कार्यप्रणालियों को तुरंत हटाया जाए, लाखों छात्रों के लिए शिक्षा के अधिकार को लागू करने हेतु योजनाएं बनायी जाएं और सभी छात्रों को सस्ती, भरोसेमंद और सुलभ इंटरनेट सेवा उपलब्ध की जाए.

मार्टिनेज ने कहा, "कोरोना वायरस से हरेक व्यक्ति के जीवन की सुरक्षा के प्रयास में बच्चों की शिक्षा का हरण कर लिया गया. बच्चों के हितों के बलिदान की भरपाई के लिए, सरकारों को अंततः इस चुनौती के लिए कमर कसना चाहिए और दुनिया के सभी बच्चों के लिए तत्काल निःशुल्क शिक्षा उपलब्ध करनी चाहिए."

दुनिया भर में अधिकाधिक बच्चों को शिक्षित करने की दशकों की धीमी लेकिन स्थायी प्रगति 2020 में अचानक थम गई. यूनेस्को के अनुसार अप्रैल तक, नोवल कोरोना वायरस का प्रसार रोकने के लिए 190 से अधिक देशों में अभूतपूर्व ढंग से 140 करोड़ छात्रों को उनके पूर्व-प्राथमिक, प्राथमिक और माध्यमिक स्कूलों से निकाल बाहर कर दिया गया. बाद में कुछ देशों में स्कूल फिर से खोले गए या कुछ छात्रों के लिए खोले गए, जबकि अन्य जगहों पर स्कूलों में छात्रों की प्रत्यक्ष तौर पर वापसी नहीं हुई है. स्कूल बंद होने के दौरान, ज्यादातर देशों में, शिक्षा या तो ऑनलाइन या अन्य दूरस्थ तरीकों से प्रदान की गई, लेकिन इसकी सफलता और गुणवत्ता में भारी अंतर है. इंटरनेट तक पहुंच, कनेक्टिविटी, सुलभता, भौतिक तैयारी, शिक्षकों का प्रशिक्षण और घर की परिस्थितियां समेत कई मुद्दों ने दूरस्थ शिक्षा की व्यवहार्यता को बड़े पैमाने पर प्रभावित किया.

ह्यूमन राइट्स वॉच को सभी देशों से एक ही तरह के रुझान और पैटर्न मिले, लेकिन इस आधार पर अलग-अलग देशों में शिक्षा और अन्य बाल अधिकारों पर महामारी के प्रभाव के बारे में सामान्यीकृत निष्कर्ष नहीं निकाला गया है. कुलमिलाकर, इन 60 देशों में लोगों का साक्षात्कार किया गया: आर्मेनिया, ऑस्ट्रेलिया, बांग्लादेश, बेल्जियम, ब्राजील, बुर्किना फासो, कंबोडिया, कैमरून, कनाडा, मध्य अफ्रीकी गणराज्य, चिली, चीन, कोस्टा रिका, क्रोएशिया, डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो, डेनमार्क, इक्वाडोर, फिनलैंड, फ्रांस, जर्मनी, घाना, ग्रीस, ग्वाटेमाला, भारत, इंडोनेशिया, ईरान, इराक, इजरायल, इटली, जापान, जॉर्डन, कजाकिस्तान, केन्या, किर्गिस्तान, लेबनान, मेडागास्कर, मैक्सिको, मोरक्को, नेपाल, नीदरलैंड, न्यूजीलैंड, नाइजीरिया, पापुआ न्यू गिनी, पाकिस्तान, पोलैंड, रूस, सर्बिया, दक्षिण अफ्रीका, दक्षिण कोरिया, स्पेन, सूडान, स्वीडन, स्विट्जरलैंड, सीरिया, थाईलैंड, युगांडा, यूनाइटेड किंगडम, संयुक्त राज्य अमेरिका, वेनेजुएला और ज़ाम्बिया.

रिपोर्ट से लिए गए चुनिंदा बयान

संयुक्त राज्य अमेरिका के कैलिफ़ोर्निया के ग्रामीण इलाका स्थित एक मध्य विद्यालय के शिक्षक ने कहा: "दूरस्थ शिक्षा से जुड़ी बहुत सारी समस्याएं वहीँ है जिनका हम कक्षा में हर दिन सामना करते हैं. जैसे कि घर पर इंटरनेट की अनुपलब्धता, संसाधनों की कमी, घर पर माता-पिता के सहयोग की कमी, घर पर अव्यवस्था, घर पर काम के शिड्यूल का अभाव, भोजन और आवास से जुड़ी अनिश्चितताएं. ये समस्याएं नई नहीं हैं. ये अचानक से बहुत साफ़-साफ़ सामने दिखाई देने लगीं हैं जब शिक्षक ज़ूम पर अचानक से इन्हें बच्चों के घरों में सीधे देखते हैं या जब उन्हें यह एहसास होता है कि वे स्कूल में नहीं हैं."

केन्या के गरिसा की एक 16 वर्षीय छात्रा ने कहा कि जब उसके स्कूल ने बंदी के दौरान पढ़ाई के बारे में कोई मार्गदर्शन प्रदान नहीं किया, तो उसने एक शिक्षक से संपर्क करने की कोशिश की. "उन्होंने कहा कि वह किसी के घर नहीं जा पाएंगे, लेकिन छात्र उनके घर आ सकते हैं. लड़की होने के कारण हम उनके घर जाने से डर गए, लेकिन मैंने सुना है कि लड़के जा रहे हैं." उसने कहा कि वह कभी-कभी टेलीविजन पर कक्षाएं देख लेती है, लेकिन घरेलू कामों, जिनमें साथ रहने वाली दो दादियों की देखभाल शामिल है, के कारण वह सभी कक्षाओं में शामिल नहीं हो पाती है. “ मेरा लगभग सारा दिन उनकी देखभाल में लग जाता है. स्कूल बंद होने के कारण मेरे ऊपर घर के कामों का बोझ बढ़ गया है.”

भारत के धर्मशाला स्थित मुख्य रूप से अनाथ या गरीब घरों के बच्चों के एक स्कूल के एक शिक्षक ने कहा: “अगर माता-पिता शिक्षित हैं, तो वे अपने बच्चों को पढ़ा सकते हैं और दूरस्थ शिक्षा में मदद कर सकते हैं - जैसा कि मेरे पति और मैं अपने बच्चों के लिए करते हैं. लेकिन बहुत से छात्रों के माता-पिता अशिक्षित या अनपढ़ होते हैं या उनके पास अपने बच्चों को पढ़ाने का समय नहीं होता है. ऐसे छात्रों को नुकसान होगा और उनकी प्रगति धीमी होगी.”

आर्मेनिया में एक मां ने बताया कि उसका बेटा, जो सातवीं का छात्र है और सुनने में अक्षम है, स्मार्टफोन से जूम पर कक्षाओं में शामिल होता है: “उसके लिए फोन पर साइन लैंग्वेज देखना बहुत कठिन होता है… सोचिए कि सात हिस्सों में बटें फोन स्क्रीन पर यह देखना कितना मुश्किल होता होगा.”

भारत के उत्तर प्रदेश राज्य की एक 8 वर्षीय लड़की महामारी के दौरान अपने परिवार के साथ नेपाल के नेपालगुंक जा पहुंची, जहां उसका परिवार काम की तलाश में गया था. फरवरी 2021 में वह एक ईंट भट्टे पर काम कर रही थी, जबकि घर पर उसका स्कूल फिर से खुल गया था: "मुझे अपनी किताबों और गुलाबी स्कूल यूनिफार्म की याद आती है.''

कजाकिस्तान के एक 16 वर्षीय लड़के ने कहा कि उसका स्कूल ज़ूम पर कक्षाएं लेना चाहता था, लेकिन ख़राब इंटरनेट कनेक्शन पर यह मुमकिन नहीं हुआ: "इंटरनेट कनेक्शन में खामियां थीं और यह ठीक से काम नहीं कर रहा था."

भारत के मुंबई में दो बच्चों के एक पिता ने कहा: “हमारे पास एक कंप्यूटर है. मैं और मेरी पत्नी दोनों घर से काम कर रहे हैं, इसलिए हमें इसकी ज़रूरत है. अब दोनों बच्चों को भी कक्षाओं के लिए कंप्यूटर की जरूरत है. एक ही समय में दोनों की कक्षाएं होने से हमें दो कंप्यूटर चाहिए. हमारे वेतन में कटौती हुई है, हम दूसरा लैपटॉप कैसे खरीद सकते हैं? इसलिए, एक बच्चा कक्षाएं नहीं कर पा रहा है.”

जर्मनी के पॉट्सडैम के पास एक स्कूल में दूसरी कक्षा के एक शिक्षक ने कहा: "यह घोषणा की गई कि स्कूल के कंप्यूटर्स में स्काइप इनस्टॉल किया जाएगा ताकि शिक्षक इसका उपयोग छात्रों और अभिभावकों से संपर्क के लिए कर सकें... लेकिन पता चला कि स्कूल के कंप्यूटर्स में कैमरा नहीं था, इसलिए यह बात यहीं ख़त्म हो गई... शिक्षकों को ऑनलाइन या कंप्यूटर आधारित काम करने की सुविधाएं नहीं दी गई हैं, अतः, इससे स्कूल बंद होने के दौरान शिक्षकों की पढ़ाने की क्षमता सीमित हो जाती है."

ब्राजील के साओ पाउलो में एक निजी माध्यमिक विद्यालय के एक शिक्षक ने अपने स्कूल को "अत्यंत साधन संपन्न" बताया. उन्होंने कहा कि वह बीते पांच साल से पढ़ाने के लिए डिजिटल प्लेटफॉर्म का उपयोग कर रहे है: "तो मैं उसी तरह पढ़ाता हूं जैसा मैं पहले करता था... मेरी दुनिया में चीजें बहुत आसान हैं."

नेपाल में एक 14 वर्षीय लड़के ने तब काम करना शुरू किया जब उसका स्कूल बंद हो गया और उसके परिवार को खाने के लाले पड़ गए. उसने कहा, "कुछ समय तक मुझे लगा था कि स्कूल दोबारा खुलने पर मैं वापस जाऊंगा, लेकिन मुझे अब ऐसा नहीं लगता. मुझे ड्राइविंग करने और पैसे कमाने में मज़ा आता है तो अब मैं स्कूल वापस जाकर क्या करुंगा? अगर मैं स्कूल वापस गया भी, तो वहां लंबे समय तक नहीं टिक पाऊंगा."

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